Wednesday, 16 June 2021

पिता।।









सर कि छाया और परिवार कि जडे़ हो तुम, 

गये जो कभी तो सब बिखर जायेगा,

बरसों से बांध के रखा शाखों को जिसने,

उन शाखाओं कि बुनियाद हो तुम । ।


आंखों कि पुत्लियो मे दिखता जिया हुआ एक दौर है,

चेहरे कि झुर्रियों मे दिखते वक़्त के सारे उतार चढ़ाव हैं,

बातो से भले कभी प्यार ना झलकाया तुमने,

पर पिता का दिल कभी छुपाए छुपा भी कहां तुमसे । ।


प्यार कि परिभाषा क्या है मैं नही बता सकता,

पर सर पे जो हाथ रखते हो तुम,

उसमें दुनिया का सारा प्यार मिल जाता है मुझे,

वाक़िफ हूं इस बात से कि‌ किसी रोज अकेले सब सम्हालना होगा,

बिना तुम्हारी डांट और प्यार के दिन भी गुजारने होंगे,

मेरी बेवकूफियो पर चिल्लाने और डांटने के लिये तुम ना होगे,

बीमार पड़ने पर मेरे सर पे हाथ रखने भी तुम ना आओगे । । 

सच में, बिखर ही जायेगा सब कुछ,

अगर गये किसी रोज़ तुम जो । ।


सफर में क्षितिज के एक हाथ और छूट जायेगा,

जिन आंखों ने दुनिया को देखना सिखाया,

उन्हे कैसे बुझ्ता हुआ देख पाऊंगा,

जिनके कन्धें पर बचपन बीता,

उनके भार को भला खुद के कंधों पर कैसे उठा पाऊंगा,

की अन्तिम विदाई दे सकूं तुमको,

इतना कठोर भी कैसे कर लूं अपने दिल को । । 

हां, ‌बिखर ही जायेगा सब कुछ, 

गये किसी रोज़ तुम जो । । ।